Nelson Mandela International Day

Nelson Mandela International Day: नेल्सन मंडेला का नाम सुनते ही दिल में एक इज़्ज़त भरा एहसास होता है। ये वो शख्स थे जिन्होंने पूरी दुनिया को दिखाया कि सच्चाई, हिम्मत और अहिंसा के रास्ते पर चलकर भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। दक्षिण अफ्रीका में जब अश्वेतों के साथ भेदभाव अपने चरम पर था, तब मंडेला ने बिना किसी हिंसा के उसके खिलाफ आवाज उठाई।

गांधीजी की ही तरह उन्होंने भी अहिंसा को अपना हथियार बनाया। लेकिन इस राह पर चलना आसान नहीं था। उन्हें 27 साल तक जेल में रहना पड़ा। सोचिए, 27 साल इतने लंबे वक्त तक कोई अपने उसूलों पर डटा रहे, ये बहुत बड़ी बात है। लेकिन मंडेला ने हार नहीं मानी।

जेल से निकलने के बाद उन्होंने नफरत के बदले प्यार और बदले की जगह माफी को चुना। यही वजह है कि उन्हें पूरी दुनिया में एक ‘शांतिदूत’ के रूप में देखा जाता है। और फिर इतिहास बना वे दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। हर साल 18 जुलाई को दुनियाभर में नेल्सन मंडेला डे मनाया जाता है।

इस दिन को इसलिए खास माना जाता है क्योंकि ये इंसानियत, समानता और सेवा के मूल्यों को याद दिलाता है। मंडेला मानते थे कि अगर हर इंसान सिर्फ 67 मिनट भी समाज की सेवा में दे, तो दुनिया एक बेहतर जगह बन सकती है। ये 67 मिनट उनके जीवन के 67 सालों की सेवा का प्रतीक है।

जेल में बिताए 27 साल

1947 में उन्हें अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की यूथ लीग का सेक्रेटरी चुना गया। तब से ही उन्होंने अश्वेत लोगों के हक के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी थी। लेकिन ये रास्ता आसान नहीं था। 1961 में मंडेला और उनके कुछ साथियों पर देशद्रोह का आरोप लगा, लेकिन वो बरी हो गए। इसके बावजूद मुश्किलें खत्म नहीं हुईं।

1962 में उन पर मजदूरों को हड़ताल के लिए भड़काने और बिना इजाजत देश छोड़ने के आरोप लगे। इसी केस में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। और फिर 1964 में उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई। जेल में उनका कैदी नंबर था 466/64।
जेल का सफर आसान नहीं था। वहां उन्होंने कोयले की खदान में काम किया, बेहद कठिन हालातों में जिंदगी बिताई। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। जेल में रहते हुए ही उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की। 27 साल तक सलाखों के पीछे रहने के बाद, 1990 में आखिरकार दक्षिण अफ्रीका की श्वेत सरकार को झुकना पड़ा और उन्हें रिहा करना पड़ा।

उनकी रिहाई सिर्फ एक शख्स की आजादी नहीं थी, वो एक नए युग की शुरुआत थी। कुछ ही सालों में नेल्सन मंडेला ने इतिहास रच दिया वो दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। करीब 10 साल तक उन्होंने देश की कमान संभाली और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि सच्ची लीडरशिप कैसी होती है।

भारत रत्न और निशान-ए-पाकिस्तान से किए गए सम्मानित

नेल्सन मंडेला का नाम जब भी लिया जाता है, तो हमें याद आता है एक ऐसा इंसान जिसने अपने देश के लिए सारी जिंदगी संघर्ष किया, और वो भी बिना हिंसा के रास्ते पर चले हुए। जेल से छूटने के बाद भी उन्होंने अपनी मुहिम को नहीं रोका। गांधीजी की तरह ही उन्होंने अहिंसा को हथियार बनाया और उसी रास्ते पर चलते रहे।

यही वजह थी कि लोग उन्हें ‘अफ्रीका का गांधी’ कहने लगे। उनकी इसी शांति और मानवता की लड़ाई ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। भारत सरकार ने साल 1990 में उन्हें देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ देकर सम्मानित किया। ये काफी खास बात थी क्योंकि मंडेला पहले विदेशी नागरिक थे जिन्हें ये सम्मान दिया गया।

अब एक और दिलचस्प बात ये है कि भारत ही नहीं, पाकिस्तान ने भी मंडेला को अपना सबसे बड़ा सम्मान ‘निशान-ए पाकिस्तान’ दिया था। वो पहले गैर-पाकिस्तानी राष्ट्रपति थे जिन्हें ये अवॉर्ड मिला। सोचिए, एक ऐसे नेता की सोच और काम ने दो दुश्मन माने जाने वाले देशों को भी एक बात पर सहमत कर दिया कि इंसानियत और न्याय के लिए मंडेला का योगदान वाकई काबिल-ए-तारीफ है।

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