National Broadcasting Day: यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि हर साल 23 जुलाई को हम राष्ट्रीय प्रसारण दिवस (National Broadcasting Day) के रूप में मनाते हैं। ये दिन सिर्फ रेडियो की शुरुआत का जश्न नहीं है, बल्कि उस दौर की याद भी दिलाता है जब आवाज के जरिए देश को जोड़ा गया था।
आज ही के दिन साल 1927 में भारतीय प्रसारण कंपनी (Indian Broadcasting Company) ने पहली बार संगठित रेडियो प्रसारण शुरू किया था। उस समय शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि रेडियो एक दिन करोड़ों लोगों की आवाज बन जाएगा।
रेडियो ने ना सिर्फ मनोरंजन दिया, बल्कि देश के विकास, शिक्षा और संस्कृति को संरक्षित करने में भी बड़ी भूमिका निभाई। गांव-देहात से लेकर शहरों तक, रेडियो ने लोगों को जोड़े रखा और एक प्लेटफॉर्म दिया जहाँ हर आवाज की अहमियत थी।

इस दिन हुई थी भारत में रेडियो की शुरूआत
भारत में रेडियो का इतिहास करीब 100 साल पुराना है। 23 जुलाई 1927 को पहली बार बॉम्बे (अब मुंबई) से रेडियो पर आवाज गूंजी थी। ये प्रसारण इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी यानी IBC ने किया था। इसी दिन को हम हर साल नेशनल ब्रॉडकास्टिंग डे के तौर पर मनाते हैं क्योंकि यहीं से भारत में रेडियो युग की शुरुआत हुई थी।
उस दौर में रेडियो सिर्फ एंटरटेनमेंट का जरिया नहीं था, बल्कि ये लोगों को देश-दुनिया की खबरें पहुंचाने वाला एक अहम माध्यम भी बन गया था। कुछ ही सालों में, यानी 1930 में, इस सेवा को एक नया नाम मिला – इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस (ISBS)।
लेकिन असली पहचान तो इसे 1936 में मिली, जब इसका नाम रखा गया ऑल इंडिया रेडियो (AIR)। AIR ने ही देशभर में रेडियो को घर-घर तक पहुंचाया। चाहे गांव हों या शहर, रेडियो ने एक आवाज में सबको जोड़ा।
आजादी के बाद जब भारत एक नया रास्ता तलाश रहा था, तब ऑल इंडिया रेडियो यानी AIR ने देश की आवाज बनने की जिम्मेदारी उठाई। जैसे-जैसे अलग-अलग राज्यों में इसके क्षेत्रीय स्टेशन खुलते गए, वैसे-वैसे ये रेडियो हर कोने तक पहुँचता गया।
AIR ने सिर्फ खबरें ही नहीं सुनाईं, बल्कि अलग-अलग भाषाओं में प्रोग्राम पेश करके भारत की भाषाई विविधता को भी अपनाया। चाहे खेती से जुड़ी जानकारी हो, पढ़ाई से जुड़े शैक्षिक शो हों या फिर हेल्थ अवेयरनेस रेडियो ने हर वर्ग के लिए कुछ ना कुछ दिया। और हाँ, मनोरंजन तो इसका एक खास हिस्सा बन गया था।
अगर बात करें इसके सबसे खास प्रोग्राम की, तो “विविध भारती” का नाम सबसे ऊपर आता है। 1957 में शुरू हुआ ये शो म्यूजिक, ड्रामा और पॉप कल्चर का ऐसा मिक्स लेकर आया, जिसने करोड़ों लोगों को जोड़े रखा। इसने ये साबित कर दिया कि इतने विविधताओं से भरे देश में भी रेडियो लोगों को एक सूत्र में बाँध सकता है।

आजादी से पहले और बाद में रेडियो का बदलता रोल
आजादी से पहले का दौर कुछ और ही था। उस समय जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाना खतरनाक माना जाता था, तब रेडियो एक छुपा हुआ हथियार बनकर उभरा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो की शुरुआत की, जिससे उन्होंने विदेशों में रहकर भी भारतीयों के दिलों में जोश भर दिया।
इसी तरह कांग्रेस रेडियो भी उस समय की जनता को सच बताने और संगठित करने का एक सशक्त जरिया बना।
अब अगर आजादी के बाद की बात करें, तो रेडियो ने एकदम नया रूप लिया। अब उसका मकसद सिर्फ क्रांति नहीं, बल्कि एक नए भारत का निर्माण बन गया।
गांव-गांव तक सरकारी योजनाएं, शिक्षा, खेती-बाड़ी की जानकारी और आपातकालीन सूचनाएं पहुंचाने में रेडियो ने अहम रोल निभाया। खासकर जब देश में टीवी और इंटरनेट जैसी सुविधाएं हर किसी के पास नहीं थीं, तब रेडियो ही एकमात्र सहारा था जो लोगों तक सच्ची और सही जानकारी पहुंचा सकता था।
प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ या तूफान के समय भी रेडियो ने अपनी अहमियत साबित की। ऐसे हालात में जब बाकी सारी व्यवस्थाएं ठप हो जाती थीं, रेडियो लोगों तक जरूरी सूचना पहुंचाने का सबसे भरोसेमंद जरिया बन जाता था।
आज भले ही रेडियो के सामने मोबाइल और सोशल मीडिया जैसे तेज प्लेटफॉर्म आ गए हों, लेकिन उसकी अहमियत आज भी बनी हुई है। आज भी दूर-दराज के इलाकों में रेडियो ही वो आवाज है जो लोगों तक सरकार की बातें, जरूरी खबरें और मनोरंजन पहुंचाता है।
यानी कहा जाए तो आजादी से पहले रेडियो ने जहां लोगों को जागरूक किया, वहीं आजादी के बाद देश को जोड़ने और आगे बढ़ाने में मदद की। यही वजह है कि रेडियो सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि एक दौर का गवाह है। वहीं 21वीं सदी ने जैसे ही दस्तक दी, वैसे ही हमारे देश में डिजिटल युग की शुरुआत हो गई।
अब चीजें सिर्फ अखबार या टीवी तक सीमित नहीं रहीं। सरकार की Digital India जैसी योजनाओं ने इस क्रांति को और भी रफ्तार दी। आज गांव-देहात में बैठे लोग भी आसानी से डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से जुड़ पा रहे हैं, चाहे वो पढ़ाई हो, खबरें देखना हो या फिर एंटरटेनमेंट।
स्मार्टफोन और सस्ता इंटरनेट इस पूरे बदलाव के हीरो बन गए हैं। पहले जो कंटेंट सिर्फ शहरों के लोगों तक सीमित था, अब वो हर किसी की पहुंच में है। इससे न सिर्फ सबको बराबरी का मौका मिला है, बल्कि लोग अब ज्यादा इंटरैक्टिव हो गए हैं। मतलब अब सिर्फ देखने-सुनने की बात नहीं, बल्कि लोग खुद भी कंटेंट बना रहे हैं और अपनी बात पूरी दुनिया तक पहुंचा रहे हैं।
अगर बात करें रेडियो और टेलीविजन की, तो उन्होंने दशकों से हमें सिर्फ एंटरटेन नहीं किया, बल्कि हमें जोड़ा भी है। चाहे त्योहारों की धूम हो या देश में कोई बड़ी खबर, रेडियो और टीवी ने देश के कोने-कोने को एक साथ जोड़े रखा।
इन माध्यमों ने लोगों को न सिर्फ जागरूक किया, बल्कि उन्हें कई बार जरूरी जानकारियां और सीख भी दी। अब जब ये माध्यम डिजिटल रूप ले चुके हैं, तो इनका असर और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज का यूथ हो या बुजुर्ग, सब अपने-अपने तरीके से इस डिजिटल कंटेंट से जुड़ रहे हैं।