Pi Approximation Day: हर साल 14 मार्च को दुनियाभर में कई लोग पाई डे (Pi Day) के तौर पर celebrate करते हैं। इसकी खास वजह ये है कि इस तारीख का फॉर्मेट 3/14 होता है, जो हमें पाई (π) के शुरुआती तीन digits यानी 3.14 की याद दिलाता है। लेकिन ये तरीका डेट लिखने का खासतौर पर अमेरिका में इस्तेमाल होता है, जहां महीने पहले और दिन बाद में लिखा जाता है।
अब अगर हम भारत या बाकी देशों की बात करें, जहां दिन पहले और महीना बाद में लिखा जाता है, तो लोग 22 जुलाई को पाई एप्रॉक्सिमेशन डे (Pi Approximation Day) के रूप में मानते हैं। इसकी वजह है भिन्न 22/7, जो पाई का एक आसान और नजदीकी मान माना जाता है। ये तरीका गणित की दुनिया में काफी फेमस है, क्योंकि इससे पाई की वैल्यू का अच्छा अनुमान मिल जाता है।

जानिए क्या है पाई
अगर आप कभी भी किसी गोल चीज जैसे कि रोटी, चकला या टायर को ध्यान से देखें, तो आपको उसकी एक बात कॉमन लगेगी उसका गोल आकार। अब सोचिए, अगर हम उसकी बाहरी लंबाई (परिधि) और उसके आर-पार की लंबाई (व्यास) को नापें, तो दोनों का जो अनुपात निकलता है, वही होता है पाई यानी π।
पाई एक खास गणितीय संख्या है, जो किसी भी सर्कल की परिधि और व्यास के बीच के रिश्ते को बताती है। इसे ग्रीक भाषा के अक्षर π से दर्शाया जाता है। चाहे सर्कल छोटा हो या बहुत बड़ा, ये अनुपात हमेशा एक जैसा ही रहता है। इसकी वैल्यू लगभग 3.14 मानी जाती है, लेकिन कई बार इसे 22/7 के रूप में भी लिखा जाता है ताकि कैल्कुलेशन आसान हो जाए।
असल में पाई एक irrational number है, यानी इसके बाद दशमलव के बाद के अंक कभी खत्म नहीं होते और न ही दोहराते हैं। पाई का इस्तेमाल सिर्फ स्कूल की मैथ्स बुक में ही नहीं होता, बल्कि ये इंजीनियरिंग, साइंस, कंप्यूटर और यहां तक कि स्पेस मिशन तक में भी बहुत काम आता है।

पाई का इतिहास
पेट्र बेकमैन की किताब A History of Pi के मुताबिक, π को सबसे पहले 1706 में एक वेल्श गणितज्ञ विलियम जोन्स ने इस्तेमाल किया था। उन्होंने इसे “periphery” यानी परिधि के लिए एक छोटा और आसान symbol बनाने के लिए चुना था। लेकिन उस समय ये उतना फेमस नहीं हुआ।
करीब 30 साल बाद, इस symbol को असली पहचान तब मिली जब मशहूर गणितज्ञ लियोनहार्ड यूलर ने 1737 में इसे अपनाया और फिर ये धीरे-धीरे एक standard mathematical notation बन गया। अब बात करते हैं एक और दिलचस्प इंसान की फ्रांस के गणितज्ञ जॉर्जेस बफन की।
उन्होंने पाई की वैल्यू को निकालने के लिए एक ऐसा तरीका खोजा जिसमें probability यानी प्रायिकता का इस्तेमाल होता था। इस method को आज हम “Buffon’s Needle” experiment के नाम से जानते हैं। इसमें एक सुई को कई बार किसी लाइन वाले पैटर्न पर गिराया जाता है और फिर एक खास गणितीय formula से π की approximate value निकाली जाती है।

इस कारण से मनाया जाता है पाई सन्निकटन दिवस
पाई एक ऐसा नंबर है जिसका जिक्र आते ही गणित की दुनिया की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक याद आती है। इस खास संख्या का इस्तेमाल आज से नहीं, बल्कि करीब 4,000 साल पहले से हो रहा है। पुराने जमाने में जब न तो कैलकुलेटर थे और न ही कोई डिजिटल टूल्स, तब भी बेबीलोन के लोग पाई के लगभग सही मान का इस्तेमाल करके गोल चीज़ों की लंबाई और क्षेत्रफल निकाल लेते थे।
अब बात करते हैं उस इंसान की जिसने पाई को सही तरीके से समझने की नींव रखी आर्किमिडीज। ये वही साइरैक्यूज के महान गणितज्ञ थे जिन्होंने करीब 250 ईसा पूर्व में पाई का पहला सटीक सन्निकटन निकाला। आर्किमिडीज ने पाई के मान को 31/7 और 3 10/71 के बीच बताया था।
यानी उन्होंने ये समझा लिया था कि पाई एक स्थिरांक है, जो हमेशा एक जैसा रहेगा जब भी आप किसी वृत्त की परिधि और उसके व्यास की तुलना करेंगे। इसी वजह से पाई को ‘आर्किमिडीज स्थिरांक’ भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने ही सबसे पहले इसे इतने करीबी रूप में परिभाषित किया।
आज भी जब हम पाई सन्निकटन दिवस (Pi Approximation Day) मनाते हैं, तो हम सिर्फ एक नंबर का जश्न नहीं मना रहे होते, बल्कि उस सोच, गणना और जुनून को सेलिब्रेट कर रहे होते हैं जो हजारों साल पहले शुरू हुआ था।